बुधवार, 2 दिसंबर 2009

ऐशा भी होता है

टीवी सीरियलों का रुख आजकल सास बहू से मुड़कर पति-पत्नी के संबंधों पर आ गया है। भारतीय गृहणियों में इन सीरियलों के प्रति ऐसी दीवानगी है कि वे उन्हें देखने के लिए कुछ भी दांव पर लगा सकती है। ऐसा ही एक मामला पुणे में देखने को मिला।

पुणे में एक महिला ने पति द्वारा सीरियल देखने से मना करने पर उसे तलाक दे दिया। इस मियां-बीवी में टीवी देखने को लेकर रोज लड़ाई होती थी, जो एक दिन तलाक की दहलीज तक जा पहुंची।

बकौल पत्नी, प्रतिदिन होने वाले झगडे़ की वजह से उसकी स्थिति असहनीय हो गई थी। इस कारण उसे तलाक की अर्जी दाखिल करनी पड़ी। भारतीय महिलाओं में धारावाहिकों के प्रति लोकप्रियता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। खास तौर पर घरों में रहने वाली महिलाओं के लिए सीरियल देखना दिनचर्या में शामिल हो गया है। महिला की अर्जी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पारिवारिक अदालत के जज ने कहा कि उसका पति टीवी सीरियलों को लेकर पिछले चार सालों से उससे झगड़ा कर रहा है। उसे अपनी मर्जी के कार्यक्रम नहीं देखने देता, इसलिए उसे तलाक का सहारा लेना पड़ा।

महिला ने अपने पति को अगस्त में ही तलाक दिया था। लेकिन यह मामला अब सुर्खियों में इसलिए आया कि उसके पति ने इस फैसले को पलटने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। पति के वकील का कहना है कि उसकी पत्नी द्वारा लगाए गए आरोप झूठे हैं। उन दोनों के बीच सामान्य नोंक-झोंक के सिवाय और कुछ नहीं था।

दुनिया के अजूबे

यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल होना तो महज एक औपचारिकता है, हकीकत तो यह है कि इटली के डोलोमाइट्स, स्पेन का टावर ऑफ हरक्युलिस या चीन का वुताई पर्वत अपने आप में प्राकृतिक सौंदर्य और अद्भुत स्थापत्य कला का इतिहास समेटे कला के कद्रदानों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं। यूनेस्को ने करीब 18 माह के अध्ययन के पश्चात इस वर्ष अपनी विश्व विरासत सूची में निम्न स्थलों को शामिल किया है-

[डोलोमाइट्स ]

इटली की आल्प्स पर्वत श्रंखला के अंतर्गत मौजूद लाइमस्टोन की पर्वत चोटियां देखने वालों को एकटक निहारने पर मजबूर कर देती है।

[टावर ऑफ हरक्यूलिस (स्पेन)]

यह टावर स्पेन की पहचान बन चुका है। 180 फुट ऊंचा यह लाइटहाउस करीब 1900 वर्ष पुराना है। प्रथम शताब्दी के समय से ही समुद्र यात्रा से लौटते नाविक इस लाइटहाउस को देखकर यह जान जाते थे, वह स्पेन के निकट पहुंच चुके है। खास बात यह है कि आज भी यह लाइटहाउस उपयोग में है।

[माउंट वुताई (चीन)]

इस पर्वत पर मौजूद 53 बौद्ध मठ बौद्धकालीन स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण है। इन मठों का निर्माण प्रथम शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी के मध्य किया गया। मिंग सल्तनत के दौरान निर्मित शुजियांग टेम्पल की 500 मूर्तियां बौद्ध कथाओं को बयां करती है।

[जोसन डायनेस्टी की रॉयल टॉम्ब (दक्षिण कोरिया)]

40 कब्रों का यह समूह पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। जोसन सल्तनत के शासन काल में निर्मित इन सभी कब्रों का मुख दक्षिण की ओर है। इन कब्रों के इर्द-गिर्द लकड़ी के मंदिर एवं कब्रों की रक्षा करने वालों के आवास और शाही रसोई घर भी निर्मित है। यह माना जाता था कि ये कब्रें उनके पूर्वजों की बुराई से रक्षा करती थीं।

[लोरपेनी के अवशेष (बर्किना फासो)]

करीब एक हजार साल पुराना पत्थर का यह किला एक जमाने में स्वर्ण के व्यापार का केन्द्र हुआ करता था, पर अब इस किले के अब अवशेष ही मौजूद रह गए है। यूनेस्को के विश्व विरासत स्थलों की सूची में स्थान पाने वाला बर्किना फासो का यह एकमात्र ऐतिहासिक स्थल है।

[प्राचीन शहर कराल-सूप (पेरू)]

लगभग 626 हेक्टेअर में फैले करीब 5000 साल पुराना यह शहर उस दौर की विकसित स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना है।

वैज्ञानिक की जगह काल गर्ल का पेशा

इन दिनों ब्रिटेन की एक महिला वैज्ञानिक की चर्चा हर किसी की जुबान पर है। उसने अपने बारे में एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। इस महिला वैज्ञानिक ने कहा है कि बेनामी सेक्स ब्लॉगर 'बेले डे जूर' वही है। उसने यह भी बताया है कि पूर्व में वह ऐज ए प्रॉस्टीट्यूट काम करती थी। उसने जो सबसे चौंकाने वाली बात कही है वह यह कि उसे कॉलगर्ल के रूप में काम करने में जितना संतुष्टि मिलती थी, उतना वैज्ञानिक के वर्तमान पेशे में नहीं है।

याद आता है वह दौर

इस 34 वर्षीय महिला वैज्ञानिक बु्रक मैगनंटी ने अपनी पहचान ब्रिटिश न्यूजपेपर 'द टाइम्स' को बताई है। इसके बाद वह पहली बार सार्वजनिक रूप से सामने आई है। प्रोफेशनल सैटिस्फैक्शन का जिक्र करते हुए उसने कहा है कि उसे कॉलगर्ल की अपनी बीती जिंदगी बहुत याद आती है। उसने बताया कि तब वह एक घंटे के 300 पाउंड कमाती थी। टीवी चैनल स्काई आ‌र्ट्स पर द बुक शो में बात करते हुए उसने कहा कि मैं उन क्षणों से वंचित हो गई हूं जब तमाम लोग मेरे लिए होटल में टहल रहे होते थे। उस वक्त मुझे महसूस होता था कि अब मैं वह काम करने जा रही हूं जिस काम में मैं पूरी तरह से एक्सपर्ट हूं। उसने यह भी कहा कि बेले डे जूर के अंदर अब भी बहुत कुछ बाकी है।

स्टूडेंट लाइफ में ही

डेवलपमेंटल न्यूरोटॉक्सिकोलॉजी और कैंसर रोग स्पेशलिस्ट मैगनंटी वास्तव में उस समय प्रॉस्टीट्यूट के प्रोफेशन में आई जब वह शेफील्ड यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रही थी। उसने अपने पहले कस्टमर से मुलाकात का जिक्र करते हुए कहा है कि जिस तरह दूसरी जॉब्स में आपको किसी से होने वाली पहली मुलाकात को लेकर रोमांच रहता है, उसी तरह इस प्रोफेशन में भी है। आप अपने पर्सनैलिटी के हर पहलू पर ध्यान देते हैं। ऐसा नहीं है कि पहले मुझमें बेले नहीं था। बेले मेरा अधिक विश्वस्त हिस्सा है।

शर्म तो नहीं, हां डर जरूर

यह पूछे जाने पर कि उसने ब्लॉग क्यों लिखा तो उसने कहा कि अगर मैं ऐसा नहीं करती तो मैं अपने फ्रेंड्स को नहीं बता पाती। इससे मुझे बहुत सारे लोगों के सामने खुद यह नहीं बताना पड़ा कि मेरी जिन्दगी में क्या घटित हो रहा है। हालांकि उसे अपनी पुरानी जिन्दगी को लेकर कोई शर्म महसूस नहीं होती। उसने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है कि मैं खुद को शर्मिन्दा महसूस करूं लेकिन मुझे दूसरे लोगों के रिएक्शंस का डर था। उसने यह भी कहा कि इसके लिए कहीं ज्यादा विश्वास की जरूरत थी। हालांकि उसने कहा कि उसने इसे ग्लैमराइज करने की कोशिश कभी नहीं की। इस दौरान उसने अपने लिटरेरी इंफ्लुएंसेज का भी जिक्र किया। उसने कहा कि वह 1830 में लिखे स्टेढल के नॉवेल द रेड एंड द ब्लैक की कैरेक्टर जूलियन सोरेल से इंस्पायर्ड रही है।

बना रहा सस्पेंस

वैसे बेल डे जूर के अस्तित्व को लेकर सस्पेंस काफी दिनों तक बना रहा। लोग सोचते थे कि यह सच या किसी की फैंटेसी। इस बीच इस ब्लॉग से इंस्पायर होकर एक ग्लॉसी टीवी ड्रामा भी बना, जिसमें बिली पाइपर ने लीड रोल किया।

नक्सल घेरा तोड़ कर निकले मनोज तिवारी

भोजपुरी के सुपर स्टार मनोज तिवारी पर शनिवार की रात झारखंड के गिरिडीह जिले में नक्सलियों ने अटैक कर दिया। गिरिडीह से धनबाद जाने के क्रम में घाटी में एके 47 से लैस लगभग 150 नक्सलाइट्स ने मनोज तिवारी की कार को घेर लिया। अचानक हुए इस नक्सलाइट अटैक में फौरी कार्रवाई करते हुए झारखंड के सुरक्षाकर्मियों ने मनोज को बचाया। लगभग तीन घंटे तक चले इस घटनाक्रम से नक्सलाइट्स ने एक बार फिर से अपनी ताकत का एहसास दिलाया। हालांकि सुरक्षाकर्मियों ने जांबाजी दिखाते हुए किसी अनहोनी को टाल दिया। इस पूरे घटनाक्रम पर हमने मनोज तिवारी से बातचीत की। पेश है मनोज के ही शब्दों में पूरे घटनाक्रम का ब्यौरा..
मैं अपने एक परिचित विनोद सिन्हा के इलेक्शन कैंपेन के लिए शनिवार को गिरिडीह आया था। कैंपेन में हिस्सा लेने के बाद रात 10.15 बजे मैं गिरिडीह से बाई रोड धनबाद के लिए रवाना हुआ। वहां सभी लोग मुझे मना कर रहे थे कि रात में धनबाद जाना सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं होगा। परंतु, रविवार को मुंबई में मेरा प्रोग्राम फिक्स था। महुआ चैनल पर थ्री इडियट्स के प्रोमो के लिए मुझे आमिर खान का इंटरव्यू लेना था। इसलिए रात में रुकना मेरे लिए मुनासिब नहीं था। मैं धनबाद के लिए चल पड़ा।
जैसे ही हमारी गाड़ी गिरिडीह से बाहर निकली, घाटी शुरु हो गई। थोड़ा आगे जाने पर अचानक रास्ते पर रेड कलर के कपड़े की बैरिकेटिंग दिखी। तब तक हमारी गाड़ी वहां पहुंच चुकी थी। हमने अपने ड्राइवर से पूछा कि- यह क्या है? उसने बताया कि हम लोग फंस गये है। यह नक्सलाइट्स की घेराबंदी है। हमारी गाड़ी रुकी ही थी कि बड़ी संख्या में नक्सलाइट्स ने हमें घेर लिया। सभी के हाथ में एके-47 थी। तभी पीरटाड़ थाना के प्रभारी आबिद फोर्स के साथ वहां आ गये। मेरी उनसे पुरानी जान-पहचान है और मैंने उन्हें रास्ते में मिलने के लिए बुलाया था। मैं उन्हें देखते ही गाड़ी से उतरा, पर उन्होंने जल्दी से मुझे गाड़ी में बैठने को कहा।
मैं जैसे ही गाड़ी में बैठा, एके-47 से लैस सुरक्षागार्ड ने अपनी पोजीशन संभाल ली। गाड़ी में बैठे जवानों ने मुझे तुरंत सीट के नीचे झुक जाने को कहा, क्योंकि बाहर फायरिंग शुरू हो चुकी थी। अचानक फोर्स को वहां देख नक्सलाइट्स भी हैरत में पड़ गये। वे भी फायरिंग करने लगे। मैं नीचे झुक गया। हमारे ड्राइवर ने चालाकी दिखाते हुए बैरिकेटिंग तोड़ते हुए गाड़ी को भगाया। यह किसी फिल्म के शूटिंग सा सीन था, पर था रियल।
हमारी गाड़ी भागते हुए आगे पीरटाड़ थाना पहुंची। वहां मुझे गाड़ी से उतार कर सुरक्षा घेरे में ले लिया गया। हम थाना परिसर में थे जरूर, पर वहां भी सबकी आंखों में भय के भाव साफ झलक रहे थे। उनके अफसर इस बात पर नाराज हो रहे थे कि मैं रात में इस खतरनाक सफर पर क्यों निकला? पीरटाड़ थाना भी पूरी तरह से नक्सल प्रभावित एरिया में था और वहां भी किसी समय हमला हो सकता था। पहले भी नक्सली थानों पर अटैक कर उड़ा चुके थे।
मुझे पीरटाड़ थाने से सुरक्षित निकालने के लिए थाना में पूरी प्लानिंग की गई। सिक्योरिटी को यह गुप्त सूचना मिल रही थी कि रास्ते में आगे भी नक्सली घेराबंदी कर रहे हैं। डीएसपी राजेश के नेतृत्व में लगभग 100 जवानों की कंपनी मंगाई गई। लगभग 35 मिनट वहां रुकने के बाद एक बख्तरबंद गाड़ी में मुझे बैठा कर धनबाद का खतरनाक सफर शुरू हुआ। हमारी गाड़ी को एस्कार्ट करते हुए खुद डीएसपी राजेश आगे-आगे चल रहे थे।
सूचना थी कि रास्ते में कहीं भी लैंडमाइंस लगाया जा सकता है। सुनसान रास्तों पर भी जहां कहीं थोड़ा गड्ढा या खुदा दिखता, स्वयं डीएसपी गाड़ी से उतर कर उसको सर्च करने लगते। पूरी तरह से आश्वस्त होने के बाद गाड़ी आगे बढ़ती। इस तरह रात लगभग एक बजे हम सेफली धनबाद पहुंच गये, पर आंखों से नींद गायब थी। पूरा सीन फिल्म की तरह आंखों के सामने चल रहा था। मेरी दोनों मोबाइल बंद हो गई थीं। उन्हें चार्ज किया और तब घर पर सूचना दी कि मैं सेफ हूं।
हमने इस काली रात में देखा कि झारखंड के जवान कैसे काम करते हैं। यहां के जवानों और अफसरों को हर दिन 26-11 झेलना पड़ता है। उनका साहस ही है कि झारखंड में जिंदगी करवटें बदल रही है। अब मैं मां विंध्यवासिनी के दरबार में माथा टेकूंगा।
सौजन्य से -
दैनिक जागरण
भारतीय एकता संगठन परिवार
रामपुर करछना इलाहबाद