सोमवार, 18 नवंबर 2013

मकान दुकान के किराए की रसीद अवश्य लें या मनिऑर्डर, बैंक खाते या न्यायालय के माध्यम से भुगतान करें . . .

rental-agreementसमस्या-
दिल्ली से पारस ने पूछा है –
मैं 1992 से एक किराए की दुकान में अपना व्यवसाय कर रहा हूँ। दो वर्ष पहले मुझे हृदयाघात हुआ। तब से मैं कभी कभी दुकान जाता हूँ। दुकान पर लड़के काम करते हैं। मकान मालिक दुकान का किराया समय से ले लेता है, किन्तु किराए की रसीद नहीं देता है। अब अचानक उस ने कानूनी नोटिस दिया है कि मैं दो साल से किराया नहीं दे रहा हूँ, दुकान खाली कर दो। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूँ?
समाधान-
प ने मकान मालिक से रसीद न ले कर बहुत बड़ी गलती की है। यदि मकान मालिक किसी माह का किराया ले कर रसीद नहीं देता है तो आप किराया अदा करने के दो माह के भीतर रसीद प्राप्त करने के लिए न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर सकते थे। लेकिन आप दो वर्ष से रसीद नहीं ले रहे हैं। इस कारण यह माना जाना स्वाभाविक है कि आप ने किराया अदा नहीं किया है। यदि मकान मालिक रसीद नहीं दे रहा था तो आप को दो माह की अवधि में रसीद के लिए न्यायालय को आवेदन करना चाहिए था।
दि मकान मालिक रसीद नहीं दे रहा था तो आप किराया देने से मना करते हुए मनीऑर्डर से किराया प्रेषित कर सकते थे, या फिर मकान मालिक को नोटिस दे कर उस का बैंक खाता पूछ सकते थे जिस के पता लगने पर उस के बैंक खाते में किराया जमा करा सकते थे और बैंक खाता न बताने पर एक आवेदन के साथ न्यायालय में जमा करवा सकते थे। अब तो आप ने कोई विकल्प नहीं छोड़ा है।
दिल्ली किराया अधिनियम में यह प्रावधान है कि यदि मकान मालिक दो या दो से अधिक महीनों का किराया बकाया हो जाने पर उसे भुगतान करने के लिए किराएदार को नोटिस दे और किरायेदार इस नोटिस की प्राप्ति के दो माह के भीतर किराए की राशि 15 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा न करे तो मकान मालिक मकान खाली कराने का अधिकारी हो जाता है।
प्रत्येक राज्य के लिए किराया कानून पृथक पृथक है। इस कारण से आप को तुरन्त ही दिल्ली में किराया अधिकरण में प्रेक्टिस करने वाले किसी जानकार वकील से मिल कर सलाह लेनी चाहिए और नोटिस में बताया गया बकाया किराया मकान मालिक को किसी भी तरह से ब्याज आदि सहित इस प्रतिवाद के साथ अदा कर देना चाहिए कि मकान मालिक किराया ले चुका है लेकिन आप अपने बचाव के लिए यह किराया दुबारा अदा कर रहे हैं। यदि नोटिस को आए दो माह से अधिक समय हो चुका है तो आप की किराएदारी खतरे में है। आप तुरन्त किसी अच्छे वकील से सलाह ले कर किराएदारी बचाने का उपाय करें।

नोट - ये सब तीसरा खभा से लिए गए है इनका  मकसद केवल लोगो को कानून से  परिचित कराना  है , संगठन  किसी  भी लाभ हानि  के लिए जिमेवार  नहीं होगा /

मानसिक उत्पीड़न के लिए महिलाएँ घरेलू हिंसा अधिनियम में राहत प्राप्त करें

मानसिक उत्पीड़न के लिए महिलाएँ घरेलू हिंसा अधिनियम में राहत प्राप्त करें . . .

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divorceसमस्या-
दिल्ली से नफ़ीस ज़ेहरा ने पूछा है -
मैं एक शिया मुस्लिम हूँ। मेरे एक दूध पीती पुत्री है।  मेरे खाविंद और उन के परिजन हमेशा मुझे मानसिक रूप से उत्पीड़ित करते रहते हैं जिस के कारण मैं उस घर में खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करती। लेकिन मैं अपने पति से अलग भी नहीं होना चाहती। आप सुझाव दें कि मुझे क्या करना चाहिए?
समाधान-
त्पीड़न जैसे दुष्कृत्य के लिए यह देखने की आवश्यकता नहीं है कि आप किस व्यक्तिगत विधि से शासित होती हैं। उत्पीड़न एक अपराध भी है और उस के लिए उपाय भी सामान्य और अपराधिक विधि के अन्तर्गत ही प्राप्त होंगे। यदि आप कोई अपराधिक मामला संस्थित नहीं करना चाहती हैं तो इस के लिए आप को महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा अधिनियम के अन्तर्गत उपाय प्राप्त करना चाहिए।
हिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 3 के स्पष्टीकरण (iii) में मौखिक एवं भावनात्मक दुरुपयोग को परिभाषित किया गया है। जिस में निम्नलिखित सम्मिलित हैं –
(क) अपमान, हँसी उड़ाना, तिरस्कार, गाली देना और कोई संतान या लड़का नहीं होने के बारे में विशेषकर, अपमानित करना या हँसी उड़ाना: और
(ख) किसी भी वयक्ति जिस से व्यथित व्यक्ति हितबद्ध है, को शारीरिक दर्द पहुँचाने की बारम्बार धमकी देना।
अधिनियम की धारा 3 में घरेलू हिंसा को परिभाषित किया गया है जिस की उपधारा (क) में कहा गया है कि व्यथित व्यक्ति के स्वास्थ्य की सुरक्षा, उस के जीवन, अंग या कल्याण को हानि पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या खतरा पहुँचाना या ऐसा करने का प्रयास करना जिस में शारीरिक दुरुपयोग, यौन दुरुपयोग, मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग तथा आर्थिक दुरुपयोग करना घरेलू हिंसा है।
स तरह आप को मानसिक रूप से प्रताड़ित करना घरेलू हिंसा है यदि यह इस कारण से है कि आप ने पुत्र को जन्म नहीं दिया है तो यह गंभीर भी है।
स तरह की घरेलू हिंसा के लिए आप स्वयं या इस अधिनियम के अंतर्गत नियुक्त संरक्षा अधिकारी या कोई भी अन्य व्यक्ति जो कि आप के मायके का संबंधी या मित्र हो सकता है मजिस्ट्रेट के समक्ष  अधिनियम की धारा -12 के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। इस आवेदन की सुनवाई करने के उपरान्त मजिस्ट्रेट इस अधिनियम की धारा 18 के अंतर्गत संरक्षा आदेश पारित कर सकता है जिस में वह
(क) प्रत्यर्थी या प्रत्यर्थीगण को घरेलू हिंसा का कोई भी कृत्य कारित करने से,
(ख) घरेलू हिंसा के कृत्य में मदद करने या उस के कारित करने में दुष्प्रेरित करने से,
(ग) व्यथित व्यक्ति के नियोजन वाले स्थान या यदि व्यथित व्यक्ति कोई बालक है तो उस के विद्यालय में या किसी अन्य स्थान जहाँ व्यथित व्यक्ति अक्सर जाता हो प्रवेश करने से,
(घ) व्यथित व्यक्ति के साथ किसी भी रूप में, किसी भी प्रकार की संसूचना करने के प्रयास शामिल हैं, वैयक्तिक, मौखिक या लिखित, या इलेक्ट्रॉनिक या दूरभाष संपर्क करने से,
(ङ) मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना किन्हीं संपत्तियों को अन्यसंक्रमण करने से, दोनो पक्षकारान द्वारा संयुक्त रूप से व्यथित व्यक्ति या प्रत्यर्थी द्वारा या प्रत्यर्थी द्वारा अकेले धारित या उपभोग में या प्रयुक्त बैंक लॉकर्स या बैंक खातों, जिस में उस का स्त्री-धन, या कोई अन्य संपत्ति शामिल हैस पक्षकारों द्वारा या तो संयुक्त रूप से या उन क द्वारा पृथक पृथक धारित हो को संचालित करने से,
(च)आश्रितगण, अन्य नातेदारों या किसी अन्य व्यक्ति को जो व्यथित व्यक्ति को घरेलू हिंसा का शिकार बनाने में मदद करता है प्रतिहिंसा करने से, या
(छ) कोई अन्य कृत्य करने से प्रत्यर्थीगण को निषिद्ध करने का आदेश दे सकता है।
स तरह का कोई आदेश मजिस्ट्रेट द्वारा पारित करने पर यदि प्रत्यर्थियों में से कोई जिन्हें ऐसे आदेश द्वारा निषिद्ध किया गया है कोई निषिद्ध कृत्य करता है तो यह एक अपराध होगा तथा उस के लिए निषेध आदेश का उलंघन करने वाले व्यक्ति को किसी भाँति के कारावास से जो एक वर्ष तक का हो सकता है या 20000 रुपए तक के जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
मेरी राय है कि आप को इस अधिनियम के अंतर्गत शिकायत प्रस्तुत कर के अथवा करवा कर राहत प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। इस अधिनियम में आवेदन प्रस्तुत करते ही शिकायत प्रथम दृष्टया उचित प्रतीत होने पर अंतरिम रूप से भी ऐसा कोई भी आदेश मजिस्ट्रेट पारित कर सकता है। जिस से उक्त शिकायत की सुनवाई के दौरान भी पीड़िता को संरक्षा प्राप्त हो सके।

शारीरिक योग्यता के अनुसार अनुकम्पा नियुक्ति की मांग की जा सकती है . . .

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gujrat policeसमस्या-
(भुज) कच्छ, गुजरात से वारिस ए. कुरैशी, ने पूछा है-
मेरी उम्र 31 वर्ष है, बी.ए (मनोविज्ञान, 2nd क्लास) तक पढ़ा हूँ तथा घरेलू कम्प्यूटर क्लास चलाने का काम करता हूँ। ११ जून, २००६ के दिन मेरे अब्बा ‘अब्दुलसत्तार इस्माइल कुरैशी’ अपनी दोनों किड्नी फेल होने के कारण वफात कर गए।  वह पुलिस डिपार्टमेंट में  ’वायरलेस ऑपरेटर’ की नौकरी में थे| और 9 वर्ष से  इस बीमारी से पीड़ित थे। जिन का वर्ष २००० में किड्नी ट्रांसप्लांट ऑपरेशन हुआ था, और मेरी अम्मा ने अब्बू को अपनी एक किड्नी दी थी| भारतीय कानून अनुसार मेरे घर में और कोई कमाने वाला न होने के कारण मैं ने गुजरात राज्य से आश्रित नियुक्ति मांगी|  अब सरकारी नौकरी के लिए क़ानूनी मापदंड अनुसार नियम है कि किसी भी तकनीकी या बिना-तकनीकी जगह की नोकरी के लिए आश्रित योग्यता के अनुसार नियुक्ति दी जाये।  सरजी मेरी हाईट-बोडी कुदरती इतना नहीं कि मैं पुलिस या किसी सुरक्षाबल में नियुक्त हो सकूँ  और चेस्ट के मापदंड में भी मैं खरा नहीं उतरा।  क्लास १०वीं से मुझे दोनों आँखों में डिग्री नम्बर है।  जबकि, सुरक्षा दस्तों में एकदम गुणवत्ता युक्त आँखोंवाले, चुस्त दुरुस्त युवक-युवतियों को भरती करने के नियम हैं। अब मैं तो दुरुस्त था नहीं, फिर भी ‘सरकारी नौकरी’ एक ऐसा शब्द है कि कोई भी इंसान इस नियुक्ति को छोड़ने की बचकानी हरकत नहीं कर सकता।  मैं ने भी नहीं की।  मैं शरुआती दौर में ही पुलिस ट्रेनिंग सेंटर में चला गया। जहाँ, मुझे मेरे मास्टर और उपरी अधिकारियों द्वारा भी कहा गया कि, ‘भाई तेरी भरती कैसे हो गई पुलिस में?  इन हाईट-बोडी और चश्मों के साथ’। मैं ने तो नोकरी करनी ही थी, सो मैं डटा रहा।  अपनी ट्रेनिंग में अच्छे से अच्छे रेंक लाने में। जो कुदरती हे वो  तो कुदरती ही है।  मैं न ही मेरे साथ वाले ट्रेनिंग ले रहे जवानों के साथ ड्रिल (परेड) में मैच हो पा रहा था और ना ही दौड़ और अन्य एथलेटिक गतिविधियों एवं कसरतों में। “मेरी बुरी तरह से बातें होती रहती थी कि , कैसे कैसे इंसान आ जाते हैं भरती हो के।” अब मैं ने तो नोकरी ही करनी थी, और वो भी सरकार…की, जिस से मेरा घर चल सके, जिस में मेरी अम्मी और छोटा भाई भी थे। एक दिन दौड में मैं ने अपनी छाती में हल्की सी चुभन महसूस की, लेकिन फिर भी दौड़ता रहा।  सोचा नया नया है, बाद में रोजाना कसरतें करने से तंदुरुस्ती आ जायेगी। पर ऐसा हुआ नहीं, मैं रोज ये चुभन मेरे सीने में महसूस करने लगा, एक दिन ऐसा आया की मेरी हालत खस्ता हो गयी।  मैं दौड भी नहीं पा रहा था और अब तो चलने से भी ये पीड़ा होने लगी थी। साथ ही साथ मेरे चश्मो के कारण भी ट्रेनिंग में मुझे बहुत तकलीफ होती रहती थी, मैं चश्मे निकाल कर दौड़ता और कसरतें ड्रिल वगेरा करता।  पर चश्मे न पहनने के कारण भी कुछ चिन्ह  और आदेश समज नहीं पा रहा था| उस में भी गड़बड़ी होने लगी| मैं ने ट्रेनिंग सेंटर से अपने इलाज के लिए पासवाले दवाखाने में गया।  उन्होंने मुझे गुजरात के राजकोट में चेकिंग करवाने के आदेश दिए।  मैं वहाँ गया और दो दिन तक दाखिल रहा। पीड़ा भी बहुत थी। (मैं वह शारीरिक कसरतें झेल नहीं पाया था) अब मुझे डर लगने लगा कि मेरी नौकरी जायेगी। फिर से मैं ट्रेनिंग सेंटर में पहुँच गया।  पर अफ़सोस, मेरे शरीर में अब इतनी ताकत ही नहीं थी कि मैं ऐसी शारीरिक कवायदें झेल सकूँ। अब कोई रास्ता नहीं था। मैं ट्रेनिंग सेंटर से आराम के लिए घर आ गया। अब गुजरात सरकार के नीति नियम अनुसार मुझे नौकरी से ख़ारिज कर दिया गया। बहुत अफ़सोस हुआ, कि सरकारी नौकरी गया।  अब मैं अपना परिवार केसे चलाऊंगा? बाद में कम्पयूटर क्लास चलाने लगा।  ईश्वर के करम से मैं मेरा खर्च निकाल लेता हूँ। पर अभी भी लोगों के ताने सुनता हूँ कि। मैं सरकारी नौकरी छोड़ आया।  जब कि ऐसा था नहीं।  क्यों कि मैं कुदरती रूप से लायक ही नहीं था उस जगह के लिए। आज तक मुझे यही सवाल सताते रहते हैं कि क्यों मुझे ऐसी जगह नियुक्त किया जिस के लिए में नालायक हूँ?  क्यों मुझे ऐसी नोकरी नहीं दी कि जो मैं अपनी शारीरिक क्षमताओं के अनुसार कर सकता? और अपने परिवार का गुजारा कर सकता। जैसे की कम्पाउंडर या क्लास तीन या क्लास चार।  नौकरी चाहे पुलिस की न हो पर ऐसी जरूर हो जो मैं कर सकूँ| आप की ये साइट तीसरा खंबा मैं ने इंटरनेट पर देखी, और आपके समाधान पढ़ने के बाद मुझे विश्वास है कि आप मुझे इस राह में उचित सलाह कि क्या मैं अब भी सरकार से आश्रित नियुक्ति (रहमराह भरती) की मांग कर सकता हूँ? क्या मुझे अभी भी अपने परिवार के गुजारे के लिए नौकरी मिल सकती है?
समाधान-
प ने तथ्य विस्तार से लिखे हैं, यह अच्छी बात है। फिर भी आप यह लिखना भूल गए कि आप को ट्रेनिंग/ नौकरी से कब खारिज किया गया? यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है। इस से हमें पता लगता कि आप को क्या उपाय बताना चाहिए। खैर।
नुकम्पा नियुक्ति तो आप के पिता के सरकारी विभाग ने आप को दे दी थी। इस कारण आप की यह शिकायत तो वाजिब नहीं होगी कि आप को अनुकम्पा नियुक्ति नहीं दी गई। लेकिन यह सही है कि आप को अनुकम्पा नियुक्ति ऐसे पद पर देनी चाहिए थी जिसे करने के लिए आप शैक्षणिक और शारीरिक रूप से योग्य हों। आप को जिस नौकरी के लिए उपयुक्त पाया उस के लिए शैक्षणिक योग्यता तो आप के पास थी किन्तु शारीरिक योग्यता आप के पास नहीं थी। इस शारीरिक योग्यता में आप को अयोग्य पाए जाने के कारण आप की नियुक्ति को निरस्त कर दिया गया। इस निरस्तीकरण के उपरान्त आप को चाहिए था कि आप नियुक्ति निरस्त करने वाले अधिकारी से उच्च अधिकारी को यह अपील करते कि शारीरिक योग्यता तो प्रकृति प्रदत्त है। इस कारण से आप को ऐसी नौकरी दी जाए जो कि आप की शारीरिक योग्यता के अनुरूप हो। ऐसे बहुत से पद पुलिस में हो सकते हैं जो आप की शारीरिक योग्यता के अनुसार आप को दिए जा सकते हैं। खैर¡ आप अब भी ऐसा प्रार्थना पत्र गुजरात पुलिस विभाग को कर सकते हैं। मेरा मत है कि ऐसा आवेदन ले कर आप को स्वयं आप के विभाग के उच्च अधिकारी से मिलना चाहिए।
स प्रार्थना पत्र को यदि गुजरात पुलिस निरस्त कर देती है या एक दो माह में कोई निर्णय नहीं लेती है तो आप को उच्च न्यायालय में सेवा संबंधी मामलों की प्रेक्टिस करने वाले किसी वकील से मिल कर उसे अपने सारे दस्तावेज दिखाने चाहिए और राय करते हुए एक नोटिस न्याय प्राप्ति की मांग करते हुए गुजरात पुलिस व गुजरात सरकार को प्रेषित करना चाहिए जिस में यह मांग करनी चाहिए कि आप को पुलिस विभाग में आप की शारीरिक क्षमता के अनुसार नौकरी प्रदान की जाए या किसी अन्य विभाग में आप को नौकरी दी जाए। इस नोटिस की अवधि गुजर जाने के उपरान्त इस मांग की पूर्ति के लिए आप को सरकार के विरुद्ध एक रिट याचिका गुजरात उच्च न्यायालय में प्रस्तुत करनी चाहिए। यह रिट याचिका ही एक मात्र माध्यम है जिस से आप राहत प्राप्त कर सकते हैं।
लेकिन हमारे यहाँ न्यायालयों में इतने अधिक मुकदमे हैं कि एक मुकदमा कब निर्णीत होगा यह निश्चित नहीं है। हो सकता है इस मुकदमे को निर्णीत होने में दस वर्ष भी लग जाएँ और तब आप को राहत प्राप्त हो। इस कारण से आप को अपने वर्तमान व्यवसाय कम्प्यूटर कक्षा को विकसित करने पर भी ध्यान देना चाहिए। कम्प्यूटर कक्षा के साथ आप आप कुछ आनुषंगिक कार्य कर सकते हैं। अपने व्यवसाय को इस तरह विकसित कर सकते हैं कि आप उस में कुछ अन्य व्यक्तियों को भी नियोजन प्रदान कर सकें और आप की आय में वृद्धि भी हो। अनेक बार ऐसा होता है कि शारीरिक योग्यताएँ कम होने पर व्यक्ति का मस्तिष्क आदि अधिक क्षमता से कार्य करता है और प्रयास करने पर वह अधिक सक्षम कार्य करते हुए सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित करता है। वैसी स्थिति में अक्षमता वरदान बन जाती है। आप रिट अवश्य करें, लेकिन उस से अधिक आस न लगाएँ और अपने व्यवसाय को विकसित करने का प्रयत्न करें। हो सकता है उसी क्षेत्र में आप सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित करें।
SAUJANYA SE TEESHARAKHAMBHHA

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कहते हैं दुनिया में हर चेहरे की पांच नकल भगवान ने बनाई है। मतलब हर शक्ल के पांच लोग दुनिया में हैं। आपकी शक्ल के भी 4 और चेहरे दुनिया के किसी न किसी कोने में जरूर होंगे। यह और बात है कि आपके आसपास वह चेहरा होता नहीं तो आपको लगता है आपकी तरह केवल आप ही हैं। कभी-कभार अगर जुड़वा बच्चे पैदा हुए तो वे एक जैसे दिख जाते हैं लेकिन ज्यादातर तो ऐसा होता नहीं। सोचिए अगर किसी जगह हर शक्ल के दो इंसान मिलने लगें फिर क्या हो। शायद हर कोई संशय की स्थिति में रहे कि कौन आखिर कौन है..। अगर आप सोचते हैं कि ऐसी कोई जगह हो नहीं सकती तो आप गलत सोचते हैं। जिस जगह के बारे में हम अभी आपको बता रहे हैं वहां हर चेहरे के दो इंसान हैं। जी नहीं, वहां सिर्फ जुड़वा बच्चे पैदा नहीं होते लेकिन हां, हर किसी को अपनी शक्ल का इंसान दिख ही जाता है। मॉस्को में एक रेस्त्रां है जहां हर शक्ल के दो इंसान हैं। रेस्त्रां का नाम है ट्विन स्टार। जी हां, इस रेस्त्रां में जितने भी वेटर और कर्मचारी रखे गए हैं वे जुड़वा होते हैं। रेस्त्रां में आने वाले ग्राहकों के लिए यह एक प्रकार का मनोरंजन होता है जब वे हर शक्ल के दो इंसान देखते हैं। रेस्त्रां की मालकिन अलेक्सी खोडरकोवस्की के दिमाग में अपने आप में अनूठा इस प्रकार का रेस्त्रां खोलने का विचार कैसे आया इसकी कहानी बड़ी अनूठी है। 1964 में एक फिल्म आई थी सोवियत जिसमें एक लड़की आइने में अपनी शक्ल देखकर अपने जुड़वां अस्तित्व की कल्पना करती है। बाद में दोनों की कहानी अलग-अलग चलती है। इस फिल्म को देखकर ही अलेक्स के दिमाग में ऐसी कोई जगह बनाने का खयाल दिमाग में आया और उन्होंने ट्विन स्टार रेस्त्रां खोल लिया। यहां के सारे कर्मचारी जुड़वां रखे जाते हैं जिन्हें ढूंढ़ना वास्तव में बहुत मुश्किल होता है लेकिन क्योंकि इसकी खासियत यही है तो ढूंढ़ना तो है।