बुधवार, 2 दिसंबर 2009

ऐशा भी होता है

टीवी सीरियलों का रुख आजकल सास बहू से मुड़कर पति-पत्नी के संबंधों पर आ गया है। भारतीय गृहणियों में इन सीरियलों के प्रति ऐसी दीवानगी है कि वे उन्हें देखने के लिए कुछ भी दांव पर लगा सकती है। ऐसा ही एक मामला पुणे में देखने को मिला।

पुणे में एक महिला ने पति द्वारा सीरियल देखने से मना करने पर उसे तलाक दे दिया। इस मियां-बीवी में टीवी देखने को लेकर रोज लड़ाई होती थी, जो एक दिन तलाक की दहलीज तक जा पहुंची।

बकौल पत्नी, प्रतिदिन होने वाले झगडे़ की वजह से उसकी स्थिति असहनीय हो गई थी। इस कारण उसे तलाक की अर्जी दाखिल करनी पड़ी। भारतीय महिलाओं में धारावाहिकों के प्रति लोकप्रियता दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। खास तौर पर घरों में रहने वाली महिलाओं के लिए सीरियल देखना दिनचर्या में शामिल हो गया है। महिला की अर्जी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पारिवारिक अदालत के जज ने कहा कि उसका पति टीवी सीरियलों को लेकर पिछले चार सालों से उससे झगड़ा कर रहा है। उसे अपनी मर्जी के कार्यक्रम नहीं देखने देता, इसलिए उसे तलाक का सहारा लेना पड़ा।

महिला ने अपने पति को अगस्त में ही तलाक दिया था। लेकिन यह मामला अब सुर्खियों में इसलिए आया कि उसके पति ने इस फैसले को पलटने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। पति के वकील का कहना है कि उसकी पत्नी द्वारा लगाए गए आरोप झूठे हैं। उन दोनों के बीच सामान्य नोंक-झोंक के सिवाय और कुछ नहीं था।

दुनिया के अजूबे

यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल होना तो महज एक औपचारिकता है, हकीकत तो यह है कि इटली के डोलोमाइट्स, स्पेन का टावर ऑफ हरक्युलिस या चीन का वुताई पर्वत अपने आप में प्राकृतिक सौंदर्य और अद्भुत स्थापत्य कला का इतिहास समेटे कला के कद्रदानों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं। यूनेस्को ने करीब 18 माह के अध्ययन के पश्चात इस वर्ष अपनी विश्व विरासत सूची में निम्न स्थलों को शामिल किया है-

[डोलोमाइट्स ]

इटली की आल्प्स पर्वत श्रंखला के अंतर्गत मौजूद लाइमस्टोन की पर्वत चोटियां देखने वालों को एकटक निहारने पर मजबूर कर देती है।

[टावर ऑफ हरक्यूलिस (स्पेन)]

यह टावर स्पेन की पहचान बन चुका है। 180 फुट ऊंचा यह लाइटहाउस करीब 1900 वर्ष पुराना है। प्रथम शताब्दी के समय से ही समुद्र यात्रा से लौटते नाविक इस लाइटहाउस को देखकर यह जान जाते थे, वह स्पेन के निकट पहुंच चुके है। खास बात यह है कि आज भी यह लाइटहाउस उपयोग में है।

[माउंट वुताई (चीन)]

इस पर्वत पर मौजूद 53 बौद्ध मठ बौद्धकालीन स्थापत्य कला का बेहतरीन उदाहरण है। इन मठों का निर्माण प्रथम शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी के मध्य किया गया। मिंग सल्तनत के दौरान निर्मित शुजियांग टेम्पल की 500 मूर्तियां बौद्ध कथाओं को बयां करती है।

[जोसन डायनेस्टी की रॉयल टॉम्ब (दक्षिण कोरिया)]

40 कब्रों का यह समूह पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। जोसन सल्तनत के शासन काल में निर्मित इन सभी कब्रों का मुख दक्षिण की ओर है। इन कब्रों के इर्द-गिर्द लकड़ी के मंदिर एवं कब्रों की रक्षा करने वालों के आवास और शाही रसोई घर भी निर्मित है। यह माना जाता था कि ये कब्रें उनके पूर्वजों की बुराई से रक्षा करती थीं।

[लोरपेनी के अवशेष (बर्किना फासो)]

करीब एक हजार साल पुराना पत्थर का यह किला एक जमाने में स्वर्ण के व्यापार का केन्द्र हुआ करता था, पर अब इस किले के अब अवशेष ही मौजूद रह गए है। यूनेस्को के विश्व विरासत स्थलों की सूची में स्थान पाने वाला बर्किना फासो का यह एकमात्र ऐतिहासिक स्थल है।

[प्राचीन शहर कराल-सूप (पेरू)]

लगभग 626 हेक्टेअर में फैले करीब 5000 साल पुराना यह शहर उस दौर की विकसित स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना है।

वैज्ञानिक की जगह काल गर्ल का पेशा

इन दिनों ब्रिटेन की एक महिला वैज्ञानिक की चर्चा हर किसी की जुबान पर है। उसने अपने बारे में एक चौंकाने वाला खुलासा किया है। इस महिला वैज्ञानिक ने कहा है कि बेनामी सेक्स ब्लॉगर 'बेले डे जूर' वही है। उसने यह भी बताया है कि पूर्व में वह ऐज ए प्रॉस्टीट्यूट काम करती थी। उसने जो सबसे चौंकाने वाली बात कही है वह यह कि उसे कॉलगर्ल के रूप में काम करने में जितना संतुष्टि मिलती थी, उतना वैज्ञानिक के वर्तमान पेशे में नहीं है।

याद आता है वह दौर

इस 34 वर्षीय महिला वैज्ञानिक बु्रक मैगनंटी ने अपनी पहचान ब्रिटिश न्यूजपेपर 'द टाइम्स' को बताई है। इसके बाद वह पहली बार सार्वजनिक रूप से सामने आई है। प्रोफेशनल सैटिस्फैक्शन का जिक्र करते हुए उसने कहा है कि उसे कॉलगर्ल की अपनी बीती जिंदगी बहुत याद आती है। उसने बताया कि तब वह एक घंटे के 300 पाउंड कमाती थी। टीवी चैनल स्काई आ‌र्ट्स पर द बुक शो में बात करते हुए उसने कहा कि मैं उन क्षणों से वंचित हो गई हूं जब तमाम लोग मेरे लिए होटल में टहल रहे होते थे। उस वक्त मुझे महसूस होता था कि अब मैं वह काम करने जा रही हूं जिस काम में मैं पूरी तरह से एक्सपर्ट हूं। उसने यह भी कहा कि बेले डे जूर के अंदर अब भी बहुत कुछ बाकी है।

स्टूडेंट लाइफ में ही

डेवलपमेंटल न्यूरोटॉक्सिकोलॉजी और कैंसर रोग स्पेशलिस्ट मैगनंटी वास्तव में उस समय प्रॉस्टीट्यूट के प्रोफेशन में आई जब वह शेफील्ड यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रही थी। उसने अपने पहले कस्टमर से मुलाकात का जिक्र करते हुए कहा है कि जिस तरह दूसरी जॉब्स में आपको किसी से होने वाली पहली मुलाकात को लेकर रोमांच रहता है, उसी तरह इस प्रोफेशन में भी है। आप अपने पर्सनैलिटी के हर पहलू पर ध्यान देते हैं। ऐसा नहीं है कि पहले मुझमें बेले नहीं था। बेले मेरा अधिक विश्वस्त हिस्सा है।

शर्म तो नहीं, हां डर जरूर

यह पूछे जाने पर कि उसने ब्लॉग क्यों लिखा तो उसने कहा कि अगर मैं ऐसा नहीं करती तो मैं अपने फ्रेंड्स को नहीं बता पाती। इससे मुझे बहुत सारे लोगों के सामने खुद यह नहीं बताना पड़ा कि मेरी जिन्दगी में क्या घटित हो रहा है। हालांकि उसे अपनी पुरानी जिन्दगी को लेकर कोई शर्म महसूस नहीं होती। उसने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है कि मैं खुद को शर्मिन्दा महसूस करूं लेकिन मुझे दूसरे लोगों के रिएक्शंस का डर था। उसने यह भी कहा कि इसके लिए कहीं ज्यादा विश्वास की जरूरत थी। हालांकि उसने कहा कि उसने इसे ग्लैमराइज करने की कोशिश कभी नहीं की। इस दौरान उसने अपने लिटरेरी इंफ्लुएंसेज का भी जिक्र किया। उसने कहा कि वह 1830 में लिखे स्टेढल के नॉवेल द रेड एंड द ब्लैक की कैरेक्टर जूलियन सोरेल से इंस्पायर्ड रही है।

बना रहा सस्पेंस

वैसे बेल डे जूर के अस्तित्व को लेकर सस्पेंस काफी दिनों तक बना रहा। लोग सोचते थे कि यह सच या किसी की फैंटेसी। इस बीच इस ब्लॉग से इंस्पायर होकर एक ग्लॉसी टीवी ड्रामा भी बना, जिसमें बिली पाइपर ने लीड रोल किया।

नक्सल घेरा तोड़ कर निकले मनोज तिवारी

भोजपुरी के सुपर स्टार मनोज तिवारी पर शनिवार की रात झारखंड के गिरिडीह जिले में नक्सलियों ने अटैक कर दिया। गिरिडीह से धनबाद जाने के क्रम में घाटी में एके 47 से लैस लगभग 150 नक्सलाइट्स ने मनोज तिवारी की कार को घेर लिया। अचानक हुए इस नक्सलाइट अटैक में फौरी कार्रवाई करते हुए झारखंड के सुरक्षाकर्मियों ने मनोज को बचाया। लगभग तीन घंटे तक चले इस घटनाक्रम से नक्सलाइट्स ने एक बार फिर से अपनी ताकत का एहसास दिलाया। हालांकि सुरक्षाकर्मियों ने जांबाजी दिखाते हुए किसी अनहोनी को टाल दिया। इस पूरे घटनाक्रम पर हमने मनोज तिवारी से बातचीत की। पेश है मनोज के ही शब्दों में पूरे घटनाक्रम का ब्यौरा..
मैं अपने एक परिचित विनोद सिन्हा के इलेक्शन कैंपेन के लिए शनिवार को गिरिडीह आया था। कैंपेन में हिस्सा लेने के बाद रात 10.15 बजे मैं गिरिडीह से बाई रोड धनबाद के लिए रवाना हुआ। वहां सभी लोग मुझे मना कर रहे थे कि रात में धनबाद जाना सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं होगा। परंतु, रविवार को मुंबई में मेरा प्रोग्राम फिक्स था। महुआ चैनल पर थ्री इडियट्स के प्रोमो के लिए मुझे आमिर खान का इंटरव्यू लेना था। इसलिए रात में रुकना मेरे लिए मुनासिब नहीं था। मैं धनबाद के लिए चल पड़ा।
जैसे ही हमारी गाड़ी गिरिडीह से बाहर निकली, घाटी शुरु हो गई। थोड़ा आगे जाने पर अचानक रास्ते पर रेड कलर के कपड़े की बैरिकेटिंग दिखी। तब तक हमारी गाड़ी वहां पहुंच चुकी थी। हमने अपने ड्राइवर से पूछा कि- यह क्या है? उसने बताया कि हम लोग फंस गये है। यह नक्सलाइट्स की घेराबंदी है। हमारी गाड़ी रुकी ही थी कि बड़ी संख्या में नक्सलाइट्स ने हमें घेर लिया। सभी के हाथ में एके-47 थी। तभी पीरटाड़ थाना के प्रभारी आबिद फोर्स के साथ वहां आ गये। मेरी उनसे पुरानी जान-पहचान है और मैंने उन्हें रास्ते में मिलने के लिए बुलाया था। मैं उन्हें देखते ही गाड़ी से उतरा, पर उन्होंने जल्दी से मुझे गाड़ी में बैठने को कहा।
मैं जैसे ही गाड़ी में बैठा, एके-47 से लैस सुरक्षागार्ड ने अपनी पोजीशन संभाल ली। गाड़ी में बैठे जवानों ने मुझे तुरंत सीट के नीचे झुक जाने को कहा, क्योंकि बाहर फायरिंग शुरू हो चुकी थी। अचानक फोर्स को वहां देख नक्सलाइट्स भी हैरत में पड़ गये। वे भी फायरिंग करने लगे। मैं नीचे झुक गया। हमारे ड्राइवर ने चालाकी दिखाते हुए बैरिकेटिंग तोड़ते हुए गाड़ी को भगाया। यह किसी फिल्म के शूटिंग सा सीन था, पर था रियल।
हमारी गाड़ी भागते हुए आगे पीरटाड़ थाना पहुंची। वहां मुझे गाड़ी से उतार कर सुरक्षा घेरे में ले लिया गया। हम थाना परिसर में थे जरूर, पर वहां भी सबकी आंखों में भय के भाव साफ झलक रहे थे। उनके अफसर इस बात पर नाराज हो रहे थे कि मैं रात में इस खतरनाक सफर पर क्यों निकला? पीरटाड़ थाना भी पूरी तरह से नक्सल प्रभावित एरिया में था और वहां भी किसी समय हमला हो सकता था। पहले भी नक्सली थानों पर अटैक कर उड़ा चुके थे।
मुझे पीरटाड़ थाने से सुरक्षित निकालने के लिए थाना में पूरी प्लानिंग की गई। सिक्योरिटी को यह गुप्त सूचना मिल रही थी कि रास्ते में आगे भी नक्सली घेराबंदी कर रहे हैं। डीएसपी राजेश के नेतृत्व में लगभग 100 जवानों की कंपनी मंगाई गई। लगभग 35 मिनट वहां रुकने के बाद एक बख्तरबंद गाड़ी में मुझे बैठा कर धनबाद का खतरनाक सफर शुरू हुआ। हमारी गाड़ी को एस्कार्ट करते हुए खुद डीएसपी राजेश आगे-आगे चल रहे थे।
सूचना थी कि रास्ते में कहीं भी लैंडमाइंस लगाया जा सकता है। सुनसान रास्तों पर भी जहां कहीं थोड़ा गड्ढा या खुदा दिखता, स्वयं डीएसपी गाड़ी से उतर कर उसको सर्च करने लगते। पूरी तरह से आश्वस्त होने के बाद गाड़ी आगे बढ़ती। इस तरह रात लगभग एक बजे हम सेफली धनबाद पहुंच गये, पर आंखों से नींद गायब थी। पूरा सीन फिल्म की तरह आंखों के सामने चल रहा था। मेरी दोनों मोबाइल बंद हो गई थीं। उन्हें चार्ज किया और तब घर पर सूचना दी कि मैं सेफ हूं।
हमने इस काली रात में देखा कि झारखंड के जवान कैसे काम करते हैं। यहां के जवानों और अफसरों को हर दिन 26-11 झेलना पड़ता है। उनका साहस ही है कि झारखंड में जिंदगी करवटें बदल रही है। अब मैं मां विंध्यवासिनी के दरबार में माथा टेकूंगा।
सौजन्य से -
दैनिक जागरण
भारतीय एकता संगठन परिवार
रामपुर करछना इलाहबाद

शनिवार, 28 नवंबर 2009

संगठन पत्र




भारतीय एकता संगठन के संयोजक राहुल मिश्रा को मिले सम्मान पत्र और उनको लिखे गए पत्र
जो उन्होंने सगठन के विकास के लिए किया
भारतीय एकता संगठन परिवार

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

कविता नए कलमकार की

बेखौफ जिया था अब तक मैं इसलिए,
ख्‍वाहिश थी बेखौफ ही निकले दम मेरा ।

निशाने पे मैं खुद रहूं या कोई और सच है,
ये उनसे लड़ने को सदा करेगा मन मेरा ।

भय नहीं, डर नही, जां अपनी देने का,
कायम रहे ये चमन, यहीं था यतन मेरा ।

जो लड़े उनसे, वो भी किसी मां के लाल थे,
कह गए रखना संभाल के यही है वतन मेरा ।

बात जब होगी शहादत की नाम उनका आएगा,
हर जुबां पे, उन रणबांकुरों को है नमन मेरा ।

आतंक रहेगा ना नामो निशां, रहेगी ये दास्‍तां,
लड़ने की जिस दिन ‘सीमा' ठानेगा वतन मेरा

कविता नए कलमकार की

बेखौफ जिया था अब तक मैं इसलिए,
ख्‍वाहिश थी बेखौफ ही निकले दम मेरा ।

निशाने पे मैं खुद रहूं या कोई और सच है,
ये उनसे लड़ने को सदा करेगा मन मेरा ।

भय नहीं, डर नही, जां अपनी देने का,
कायम रहे ये चमन, यहीं था यतन मेरा ।

जो लड़े उनसे, वो भी किसी मां के लाल थे,
कह गए रखना संभाल के यही है वतन मेरा ।

बात जब होगी शहादत की नाम उनका आएगा,
हर जुबां पे, उन रणबांकुरों को है नमन मेरा ।

आतंक रहेगा ना नामो निशां, रहेगी ये दास्‍तां,
लड़ने की जिस दिन ‘सीमा' ठानेगा वतन मेरा

सनातन धर्मं

सनातन अथवा हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है। हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन को पवित्र एवं मर्यादित बनाने के लिये संस्कारों का अविष्कार किया। धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति की महानता में इन संस्कारों का महती योगदान है।
प्राचीन काल में हमारा प्रत्येक कार्य संस्कार से आरम्भ होता था। उस समय संस्कारों की संख्या भी लगभग चालीस थी। जैसे-जैसे समय बदलता गया तथा व्यस्तता बढती गई तो कुछ संस्कार स्वत: विलुप्त हो गये। इस प्रकार समयानुसार संशोधित होकर संस्कारों की संख्या निर्धारित होती गई। गौतम स्मृति में चालीस प्रकार के संस्कारों का उल्लेख है। महर्षि अंगिरा ने इनका अंतर्भाव पच्चीस संस्कारों में किया। व्यास स्मृति में सोलह संस्कारों का वर्णन हुआ है। हमारे धर्मशास्त्रों में भी मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या की गई है। इनमें पहला गर्भाधान संस्कार और मृत्यु के उपरांत अंत्येष्टि अंतिम संस्कार है। गर्भाधान के बाद पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण ये सभी संस्कार नवजात का दैवी जगत् से संबंध स्थापना के लिये किये जाते हैं।
नामकरण के बाद चूडाकर्म और यज्ञोपवीत संस्कार होता है। इसके बाद विवाह संस्कार होता है। यह गृहस्थ जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। हिन्दू धर्म में स्त्री और पुरुष दोनों के लिये यह सबसे बडा संस्कार है, जो जन्म-जन्मान्तर का होता है।
विभिन्न धर्मग्रंथों में संस्कारों के क्रम में थोडा-बहुत अन्तर है, लेकिन प्रचलित संस्कारों के क्रम में गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारम्भ, केशान्त, समावर्तन, विवाह तथा अन्त्येष्टि ही मान्य है।
गर्भाधान से विद्यारंभ तक के संस्कारों को गर्भ संस्कार भी कहते हैं। इनमें पहले तीन (गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन) को अन्तर्गर्भ संस्कार तथा इसके बाद के छह संस्कारों को बहिर्गर्भ संस्कार कहते हैं। गर्भ संस्कार को दोष मार्जन अथवा शोधक संस्कार भी कहा जाता है। दोष मार्जन संस्कार का तात्पर्य यह है कि शिशु के पूर्व जन्मों से आये धर्म एवं कर्म से सम्बन्धित दोषों तथा गर्भ में आई विकृतियों के मार्जन के लिये संस्कार किये जाते हैं। बाद वाले छह संस्कारों को गुणाधान संस्कार कहा जाता है। दोष मार्जन के बाद मनुष्य के सुप्त गुणों की अभिवृद्धि के लिये ये संस्कार किये जाते हैं।
हमारे मनीषियों ने हमें सुसंस्कृत तथा सामाजिक बनाने के लिये अपने अथक प्रयासों और शोधों के बल पर ये संस्कार स्थापित किये हैं। इन्हीं संस्कारों के कारण भारतीय संस्कृति अद्वितीय है। हालांकि हाल के कुछ वर्षो में आपाधापी की जिंदगी और अतिव्यस्तता के कारण सनातन धर्मावलम्बी अब इन मूल्यों को भुलाने लगे हैं और इसके परिणाम भी चारित्रिक गिरावट, संवेदनहीनता, असामाजिकता और गुरुजनों की अवज्ञा या अनुशासनहीनता के रूप में हमारे सामने आने लगे हैं।
समय के अनुसार बदलाव जरूरी है लेकिन हमारे मनीषियों द्वारा स्थापित मूलभूत सिद्धांतों को नकारना कभीश्रेयस्कर नहीं होगा।

गुरुवार, 19 नवंबर 2009

कहानी

कल आश्रय के उद्घाटन अवसर पर मुख्यमंत्री आने वाले हैं। आश्रय विकलांगों तथा असाध्य रोगों से पीडित बच्चों को आश्रय देने वाला केंद्र है। जिसका निर्माण सुनीति के अथक प्रयासों से संभव हुआ है।
उद्घाटन समारोह की सभी तैयारियां पूर्ण हो चुकी हैं। दिनभर की भागदौड के बाद सुनीति शाम को घर आई है लेकिन थकान के बजाय उसके चेहरे पर आत्मसंतुष्टि के गहरे भाव स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। खाना खाकर सुनीति अपने कमरे में बिस्तर पर लेट जाती है लेकिन दिनभर अत्यधिक व्यस्त रहने के बाद भी उसे अभी नींद नहीं आ रही है। आज की यह आत्मसंतुष्टि मात्र उसके चेहरे को ही नहीं उसके अंतर को भी प्रकाशित कर रही है और अंतर का यह प्रकाशमय होना वह बखूबी महसूस भी कर रही है। आज जीवन में पहली बार सुनीति को ऐसा लग रहा है कि यह प्रकाश जीवनभर उसके साथ रहा तो अंधकार को धीरे-धीरे मिटा ही देगा। आज सुनीति को जो संतुष्टि मिल रही है उसके पीछे एक दु:ख भरा अतीत रहा है।
क्या कुछ नहीं था सुनीति के पास! रूप, रंग, गुण सभी तो था उसके पास। पापा पी.के. सिन्हा डिग्री कालेज में अर्थशास्त्र के रीडर, मां एक कुशल गृहणी तथा दो छोटे भाई संजय और अजय। संजय की उम्र चौदह साल जबकि अजय की उम्र दस साल थी। ऐसा नहीं कि इस समय वह पूर्णरूप से चिन्तामुक्त या प्रसन्न हो। संजय और अजय दोनों ही विकलांगों की तरह जीवन व्यतीत कर रहे थे। डाक्टरों ने भी यह स्पष्ट बता दिया था कि पन्द्रह वर्ष की उम्र के बाद दोनों का जिन्दा रह पाना मुश्किल है लेकिन फिर भी सुनीति को भगवान पर विश्वास था। उसे आशा थी कि एक न एक दिन उसके दोनों भाई बिल्कुल ठीक हो जाएंगे। पैदाइश के समय हालांकि संजय और अजय की हालत बेहतर थी लेकिन जैसे-जैसे उनकी उम्र बढने लगी वैसे-वैसे ही उन दोनों के हाथ-पैर सूखने लगे और शरीर के कुछ हिस्सों में ज्यादा मांस एकत्रित होने लगा। दरअसल यह स्यूडो मसक्यूलर हाइपरट्रोफी नामक एक अनुवांशिक बीमारी थी।
प्रो. सिन्हा और श्रीमती सिन्हा संजय और अजय के स्वास्थ्य तथा सुनीति की शादी को लेकर काफी चिन्तित रहते। सुनीति की शादी तय होने में वही दिक्कत आडे आ रही थी जिसकी सुनीति के पापा-मम्मी को आशंका थी। चूंकि सुनीति की मम्मी उस अनुवांशिक बीमारी की वाहक थी जिससे संजय और अजय पीडित थे। इस तरह सुनीति भी इसी रोग की वाहक थी। सुनीति के भविष्य में जो संतान होती उसमें लडके तो संजय और अजय की तरह ही पीडित होंगे और लडकी पुन: इस रोग की वाहक होगी।
आखिरकार बहुत कोशिशों के बाद सिन्हा साहब को सुनीति के लिए एक अच्छा वर मिल ही गया। डॉ. सुशील स्थानीय डिग्री कालेज में लेक्चरार था। जैसा नाम वैसा ही व्यक्तित्व भी। सुशील एक शिक्षक होने के साथ-साथ एक समाजसेवी भी था। सिन्हा साहब को इस समय सुशील में ही साक्षात ईश्वर के दर्शन हो रहे थे। होते भी क्यों न, सुनीति के बारे में सब कुछ जानने के बाद भी वह उससे शादी के लिए तैयार जो था। हालांकि सुशील के माता-पिता पहले इस शादी के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन सुशील की इच्छा के आगे उन्हें झुकना ही पडा।
सिन्हा साहब ने बडी धूमधाम से सुनीति का विवाह सुशील के साथ कर दिया। अनुवांशिक रोग की वाहक सुनीति का विवाह हो जाने से चिंताग्रस्त सिन्हा साहब को कुछ संतुष्टि तो अवश्य मिली लेकिन यह संतुष्टि अधिक समय तक टिक न सकी। सुनीति के विवाह के कुछ दिनों बाद ही संजय की हालत बिगडने लगी। डाक्टर तो पहले ही जवाब दे चुके थे। अंतत: बडी ही दयनीय अवस्था में उसकी मृत्यु हो गई। अब तक सिन्हा साहब और उनकी पत्नी ईश्वर के किसी चमत्कार की प्रतीक्षा में थे। लेकिन संजय की मृत्यु से उनका यह विश्वास टूट चुका था। सिन्हा साहब और उनकी पत्नी संजय की मौत से पहले ही दु:खी थे. अजय पर मंडराती मौत की काली छाया देखकर उनका दु:ख और बढ गया।
संजय की मौत को लगभग एक साल ही हुआ था कि अजय की हालत भी दिन पर दिन बिगडने लगी। सिन्हा साहब ने कई डाक्टर, वैद्य और हकीमों को दिखाया। मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों में जाकर लाख मन्नतें मांगी, लेकिन सब बेकार ही सिद्ध हुई और अन्तत: निरीह जिंदगी बिता रहे अजय ने भी दम तोड दिया। एक दु:ख के बाद दूसरे दु:ख से सिन्हा परिवार टूट चुका था।
सिन्हा साहब को एक दिन अनायास ही आशा की एक किरण दिखाई दी जिसके सहारे वे और उनकी पत्नी अपनी जिंदगी काट सकते थे। सिन्हा साहब ने सोचा, हम सभी को लडके ही घर का चिराग दिखाई देते हैं लडकियां नहीं। इंसान लडकों के सहारे ही अपनी जिंदगी का सफर तय करने के सपने देखता है। मगर कितने माता-पिता ऐसे हैं जो अपने लडकों के सहारे अपनी जिंदगी काटते होंगे। अब सिन्हा साहब को सुनीति और सुशील दो-दो चिराग दिखाई दे रहे थे जिनके प्रकाश में वह अपने शेष जीवन का सफर तय कर सकते थे।
उधर अब सुनीति के पैर भारी हो चले थे। आखिरकार उसने एक बहुत ही सुंदर बेटे को जन्म दिया। सारे घर में खुशी की लहर दौड गई। सभी इस प्यारे से बच्चे को छोटू कहकर बुलाने लगे। सुशील भी छोटू को बहुत प्यार करता था। लेकिन जल्दी ही इस खुशी के बीच छोटू के अनुवांशिक रोग से पीडित होने की आशंका भी सिर उठाने लगी। चूंकि छोटू अभी तक बिल्कुल ठीक था इसलिए आशा बंधी कि शायद छोटू अनुवांशिक रोग से पीडित नहीं हो। लेकिन वह जैसे-जैसे बडा होने लगा उसके भी हाथ-पैर सूखने लगे और शरीर के कुछ हिस्सों में ज्यादा मांस एकत्रित होने लगा। जब वह छह वर्ष का हुआ तो हाल यह था कि अपने आप खाना भी नहीं खा सकता था, उठ-बैठ भी नहीं सकता था। जब कभी सुनीति की अनुपस्थिति में सुशील को छोटू का मल-मूत्र साफ करना पडता तो वह झल्ला उठता। वह धीरे-धीरे छोटू से घृणा करने लगा।
सुनीति भी सुशील के इस व्यवहार से असमंजस में थी। वह सोच रही थी कि समाज-सुधार और आदर्शवाद की बातें करने वाले सुशील को यह क्या हो गया है। आखिरकार उसके संबंधों की खटास जल्दी ही कडवाहट में बदल गई। सुनीति के सास-ससुर का व्यवहार भी वैसा ही था। इस तरह सुशील के अन्तर में काफी समय से सुलग रही तलाक की इच्छा ने आखिरकार जोर पकड ही लिया। एक दिन उसने स्पष्ट रूप से तलाक की बात कह दी। यह सुनते ही सुनीति के पैरों तले की तो जैसे जमीन ही खिसक गई। इस समय सुनीति को एक शिक्षक एवं समाजसेवी के चोले में सुशील का वास्तविक रूप स्पष्ट दिखाई दे रहा था। उसे लगा कि नारी उत्थान की बात करने वाला समाज आज भी नारी को भोग्या के अतिरिक्त कुछ नहीं समझता। अंतत: सुनीति ने तलाक के कागजों पर अपने हस्ताक्षर कर ही दिए और छोटू को साथ लेकर अपने मम्मी- पापा के पास आ गई।
ऐसे समय में मम्मी-पापा भी भाग्य का लिखा झेलने के अलावा क्या कर सकते थे? छोटू अब नौ वर्ष का हो चुका था। जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ रही थी वैसे-वैसे उसकी तबियत भी लगातार बिगड रही थी। अचानक एक दिन छोटू की तबियत बहुत बिगड गई और आखिरकार संजय और अजय की तरह वह भी चल बसा। सुनीति और उसके मम्मी-पापा को लगा कि जैसे ईश्वर ने दु:खों को झेलने के लिए ही उन्हें दुनिया में भेजा है। उन्हें उस समय चारों ओर अंधकार ही अंधकार दिखाई दे रहा था। वे टूट तो चुके थे, लेकिन कभी-कभी अत्यधिक दु:ख भी इंसान को और मजबूत बना देता है। ढलती उम्र और दु:खों के कारण सिन्हा साहब हार मान चुके थे लेकिन सुनीति इतनी कमजोर नहीं थी। वह तपकर वह कुन्दन बन चुकी थी। जैसे छोटू के बिछोह ने उसे हीरा बना दिया हो। इसी दीप्ति से उसका अंत:करण प्रकाशित हुआ। उसे लगा कि जैसे आज तक वह खोखले और आडम्बरपूर्ण समाज में जी रही थी।
वह उठ खडी हुई और उसने निश्चय किया कि वह विकलांगों एवं असाध्य रोगों से पीडित बच्चों के लिए एक ऐसे केंद्र की स्थापना कराएगी जिसमें उनके लालन- पोषण एवं शिक्षा का सम्पूर्ण प्रबंध होगा। वह इस मुहिम में जी जान से जुट गई। सिन्हा साहब और उनकी पत्नी बेटी के इस रूप को देखकर गौरवान्वित हो गए। उन्हें लगा कि जैसे उसकी जिंदगी एक नए अर्थ के साथ शुरू हुई है।
अनायास ही एक स्पर्श ने सुनीति को अतीत की स्मृतियों से वर्तमान में ला खडा किया। सुनीति ने देखा तो सामने खडे पापा का हाथ उसके सिर पर था और वे कह रहे थे- बेटी कहां खो गई हो! रात बहुत हो चुकी है अब सो जाओ। कल फिर सवेरे ही आश्रय का उद्घाटन है और सारी तैयारी तुम्हें ही करनी है।

शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

धर्मं चर्चा

ॐ हिंदुओं का सबसे लोकप्रिय मंत्र है। हिंदू ही नहीं, दूसरे संप्रदायों के लिए भी यह एक पवित्र बीजमंत्र है। ओम एकाक्षर ब्रह्म है। इसके एक अक्षर में तीन अक्षर छिपे हुए हैं। ॐ का संक्षेपीकरण संभव नहीं है। क्योंकि यह एक बीज मंत्र है।
बीज मंत्र का आशय है: ऐसा मंत्र जिसे दूसरे शब्दों के साथ जोडने से दूसरे शब्द भी मंत्र बन जाते हैं। अगर श्री गणेशाय नम: में ॐ जोड दिया जाए तो यह एक मंत्र ॐ श्री गणेशाय नम: में तब्दील हो जाता है। किसी भी शब्द को मंत्र बनाने के लिए उसके आगे ॐ जोड दीजिए। लोग यह जानते हैं।
हिंदू धर्म में ईश्वर का पूरा नाम लिखा गया है- ईश्वर प्राणिधान ॐ। इतना लंबा नाम लेकर भगवान को पुकारना संभव नहीं है, इसलिए ईश्वर को संक्षिप्त नाम ॐ से बुलाया जा सकता है। दुनिया भर में इस तरह से नाम रखने की परंपरा है। इसी परंपरा से गुड्डू, बबलू और पप्पू जैसे नाम निकले हैं।
वैसे भी कोई काम शुरू करने से पहले ईश्वर को याद कर लेना चाहिए। यह परंपरा दुनिया भर के धर्मो में है। पश्चिम के धर्मो में ईश्वर से डरने और डराने की परंपरा है- गॉड फिअरिंग।
भारतीय धर्मो में ईश्वर के प्रति प्रेम या भक्ति की परंपरा है। इसलिए भारतीय धर्मो में किसी भी काम को करने के पहले ॐ शब्द का प्रयोग करके ईश्वर को याद किया जा सकता है।
ॐ भारतीयों का प्रथम शब्द भी है। यह शब्द सबसे पहली बार ब्रह्मा के मुख से निकला था। वैसे ब्रह्मा के मुख से सबसे पहले दो शब्द निकले थे- ॐ और अथ। वाणी में ॐ पहला शब्द होता है। लिखने की परंपरा में अथ पहला शब्द है। अगर हम किसी चीज को बोल रहे हैं-जैसे श्री गणेशाय नम: कहना है- तो हमें कहना चाहिए ओम श्री गणेशाय नम:। लेकिन अगर यही वाक्य लिखा जाए तो हम लिखेंगे-अथ श्री गणेशाय नम:। जब मैं किसी की शादी का कार्ड पढता हूं तो उस पर प्राय: लिखा होता है- ॐ श्री गणेशाय नम:। जबकि लिखा होना चाहिए अथ श्री गणेशाय नम:। हमारी संस्कृति में जो कुछ वाचा परंपरा में है, उसका आरंभ ॐ से होता है और जो कुछ लेखनी परंपरा में है, उसका आरंभ अथ से होता है- जैसे अथ रैक्व कथा।
ॐ ऐसा दुर्लभ मंत्र है जिसका प्रयोग भक्ति और ज्ञान समूह के लोग तो करते ही हैं, तंत्र समूह के लोग भी धडल्ले से करते हैं। यह सर्वस्वीकार्य मंत्र है। अध्यात्म में ॐ के कुछ बहुत दुर्लभ प्रयोग किए गए हैं। अगर कोई ध्यान में प्रविष्ट नहीं हो पा रहा है, उसे केवल ॐ से आरंभ कर देना चाहिए। धीरे-धीरे वह ध्यान की गहरी अवस्था में उतरता चला जाएगा। ॐ के बारे में एक रहस्य भरी बात यह है कि इस शब्द की आध्यात्मिकता तब शुरू होती है जब हम इसे बोलना बंद कर देते हैं। जब तक तुम इसे बोलते नजर आओगे, ॐ में कोई आध्यात्मिकता नहीं होगी। लेकिन जैसे ही वाणी को विराम दोगे और इसके बाद भी उसकी आवाज तुम्हारे अंदर सुनाई देने लगे तो समझो यहीं से ॐ की आध्यात्मिकता प्रारंभ हो जाती है। पश्चिम के एक विख्यात इंडोलॉजिस्ट ने ॐ के बारे में रहस्य भरी खोज की थी- ॐ एक टेक्नीक भी है और डेस्टीनेशन भी। यह बात समझनी होगी कि कोई चीज साधन भी हो और साध्य भी। मनुष्य जाति के आध्यात्मिक इतिहास में ऐसे उदाहरण न के बराबर हैं।
लेकिन भारतीय ऋषियों ने टेक्नीक और डेस्टीनेशन को ठीक से समझा था। यहीं से ॐ के ध्यान का तरीका शुरू होता है। तरीका बडा सरल है- पहले कम से कम 10 बार ॐ का उच्चारण करें, फिर एक क्षण के लिए शांत हो जाएं और ॐ को अपने अंदर सुनने का प्रयत्न करें। जो लोग इतनी बात समझ गए होंगे, उन्हें अब यह भी मालूम हो चुका होगा कि जब हम 10 बार ॐ शब्द का उच्चारण करते हैं तो यह टेक्नीक हो जाती है और जैसे ही हम उसे सुनना शुरू करते हैं तो यह डेस्टीनेशन हो जाता है। जब हम बोलते हैं तो ॐ साधन होता है। अब ॐ के ध्यान का आख्िारी लक्ष्य होगा ऐसी स्थिति पैदा कर लेना, जहां हम बोलें नहीं, केवल सुनें..सुनें..और सुनें..।
यह एक दुर्लभ स्थिति होती है। ॐ बोलने का शब्द है ही नहीं, केवल सुनने का शब्द है। लेकिन आरंभ हमेशा बोलने से ही करते हैं। क्योंकि हम केवल वही सुन पाते हैं जो बोल सकते हैं, और हम वही बोल पाते हैं जो सुन सकते हैं। मेरे पास जब भी कोई बच्चा, जो बोल नहीं पाता है, आशीर्वाद के लिए लाया जाता है, मैं उससे एक ही सवाल पूछता हूं-क्या यह बच्चा सुन सकता है।
क्योंकि जो सुन सकता है वही बोल सकता है और जो बोल सकता है वही सुन सकता है। ॐ अनाहत का शब्द है। अनाहत का अर्थ समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि दुनिया में कोई भी आवाज पैदा करने के लिए हवा पर चोट करनी पडती है। हम चांद पर कभी भी बात नहीं कर पाएंगे, क्योंकि चांद पर हवा है ही नहीं। जिन ग्रहों पर हवा नहीं है वहां बात नहीं हो सकती। हवाओं के संपीडन से ही बात होती है। जब हवा नहीं होगी तो हम हवा को आहत नहीं कर पाएंगे-हिटिंग द एयर। लेकिन ॐ की खोज ने पहली बार बताया कि हवा को हिट किए बिना अगर हम उसे अपने अंदर सुनना शुरू कर दें, यही ॐ का सच्चा ध्यान होगा। हिट शब्द को अपनी भाषा में आहत कहेंगे। आहत का उलटा अनाहत होगा। अनाहत से ही अनहद शब्द बना है।
ॐ का ध्यान अनहद-नाद होगा। जैसे ही हम अनहद-नाद तक पहुंचेंगे हमारा लक्ष्य पूरा हो चुका होगा। यही डेस्टीनेशन है। यही ॐ का साध्य भी है। यही आध्यात्मिकता की उच्चतर स्थिति है। कबीर ने ॐ को इन्हीं अर्थो में लिया है- अनहद-नाद। रैदास भी यही कहते हैं और गुरु नानक भी इन्हीं अर्थो में कहते हैं- एक ओंकार सतनाम।
अभी पश्चिम में ब्रह्मांड के बारे में कुछ दुर्लभ खोजें हुई हैं, जिसने ॐ के बारे में नई जानकारियां उपलब्ध कराई हैं। हालांकि अध्यात्म की तुलना विज्ञान से करना बचकानापन है, लेकिन कभी-कभी इस बचकानेपन में भी काम की बातें निकल आती हैं। जिन्होंने कॉस्मोलॉजी पढी होगी उन्हें पता होगा कि आरंभ में जितने सितारे और ग्रह थे वे सभी एक अकेले बडे पिंड के रूप में थे। अचानक उस पिंड में बहुत बडा धमाका हुआ। यह कोई साढे छ: अरब साल पुरानी बात है। हमारे ब्रह्मांड का वह जन्मदिन था। जैसे ही धमाका हुआ वह विशाल पिंड छोटे-छोटे टुकडों में टूटकर पूरे ब्रह्मांड में बिखर गया। उसी से सूरज बना है, हमारी धरती बनी है, चांद बना है, शनि, मंगल, बुध और शुक्र जैसे ग्रह बने हैं। हमारी आकाशगंगा जैसी कई आकाशगंगाए बनी हैं। इस थ्योरी को वैज्ञानिक बिग-बैंग थ्योरी कहते हैं। मैं इसमें ओम के बारे में एक सूत्र की चर्चा करूंगा।
अब जब उस विशाल पिंड में धमाका हुआ होगा तो वहां हवाएं नहीं रही होंगी। जहां हवाएं नहीं होंगी, वहां आवाज भी नहीं हो सकती है।
स्वाभाविक है कि धमाके में जो आवाज हुई होगी-वही ॐ होगा। लेकिन उस शब्द को किसी ने सुना नहीं होगा। यहीं से ऋषियों की संकल्पना है कि ॐ बोलने का नहीं, केवल अनुभव का मामला है। ठीक वैसे ही जैसे विशाल पिंड के टूटने पर आवाज तो हुई होगी, लेकिन किसी ने सुना नहीं होगा। इन्हीं कारणों से ऋषियों ने ॐ शब्द को आहत का न कहकर अनाहत का शब्द कहा। इस तरह ॐ ध्वनि अनहद-नाद की ध्वनि बन गई।
ॐ के बारे में आध्यात्मिकता में फिर कई तरह के प्रयोग किए गए। पहला प्रयोग तो ॐ को ॐ की तरह नहीं बोलना है, इसके लिए इसको तीन अक्षरों में तोड दिया-अ, इ और म्। कुछ लोगों ने इसे अ, उ और म् में भी तोडा है। इसके एक अक्षर में तीन अक्षर समाहित हैं। इसलिए इसे बोलने के लिए तीनों अक्षरों को अलग-अलग और एक साथ बोलना पडता है। ॐ को कभी ओ से नहीं बोलना चाहिए। इसे हमेशा अ से आरंभ करना चाहिए। अ से चलते हुए इ पर आएं और आधा म बोलें। अ हमेशा कंठ से बोला जाता है। इ हमेशा तालु से बोली जाती है और म् हमेशा होंठों से बोला जाता है।
ॐ संपूर्ण ब्रह्मांड का इकलौता ऐसा शब्द है जिसे बोलने में मुंह और कंठ तंत्र की संपूर्णता का इस्तेमाल होता है। कृपया अगर कोई दूसरा ऐसा शब्द हो तो मुझे जरूर बताएं।
प्राय: सुना होगा कि ॐ को बहुत गहरे कंठ या हृदय से निकालना चाहिए। अगर और गहराई में जाना चाहते हो तो उसे नाभि से निकालना चाहिए। अगर तुम और गहराई बढाते चले जाओ तो यह और नीचे से निकलेगा। लेकिन यह तभी संभव है जब तुम ॐ को ओ से न बोलकर अ से बोलना शुरू कर दो। शास्त्रीय संगीत के उस्ताद प्राय: अ को कभी अपने कंठ, कभी हृदय, कभी नाभि, कभी स्वाधिष्ठान और कभी मूलाधार से निकालते हैं। इन्हीं अर्थो में भारतीय शास्त्रीय संगीत आध्यात्मिक संगीत बन जाता है। ॐ को ओ से शुरू करोगे तो उसे कभी भी हृदय या नाभि से नहीं निकाल सकते। यहीं पतंजलि ने आध्यात्मिक ध्यान को प्राप्त करने के लिए अभ्यास और वैराग्य की बात कही है। शायद यही बात शास्त्रीय संगीत के उस्ताद भी कहते हैं- रियाज से संगीत परिपक्व बनता है। लेकिन यह बातें केवल पढकर नहीं सीखी जा सकती हैं। इसके लिए गुरुओं के पास लौटना होगा। इसीलिए ॐ का ध्यान किसी गुरु के निकट बैठकर ही सीखा जा सकता है। यहीं से उपनिषद् की परंपरा शुरू होती है।

गुरुवार, 5 नवंबर 2009

समाचार संध्या

साथियों
काफी समय के बाद हमारा आपका मिलना हो रहा है पर हम अपनी इस मुलाकात को एक बार फ़िर से
यादगार बनाकर जन चाहेंगे आप सब इस साईट से जो अपेक्षा रखते है वो हम देकर जायेंगे /

०१- चीन बना रहा है ब्रम्हपुत्र नदी पर बाध जिसकी वजह से असम के आधिकांश जगह या तो सुखा हो
जाएगा या फ़िर बाढ़का खतरा
०२- गुवाहाटी में उत्तर प्रदेश के निवाशियो द्वारा दीपावली मिलन समारोह मनाया गया इस कार्यक्रम में मुख्य सहभागिता जिन लोगो ने निभाई वो इलाहबाद से जुड़े है जैसे राम शिरोमणि तिवारी ,प्रेम चंद्र मिश्रा , आदि
०३- गुवाहाटी में अगस्त ०९ से अक्टूबर ०९ तक कई भूकंप के झटके आए जिनमे तीनकी संख्या काफी तेज़ थी
भारतीय एकता

शनिवार, 25 जुलाई 2009

इंसानी भूल का परिणाम

साथियों ,

आशा है आप कुशल होंगे रामपुर में एक दुर्घटना ने ये साबित कर दिया है की इन्सान की भूल उसकी जिंदगी ले सकती है रामपुर में हुयी ये घटना एक हैण्ड पम्प में बिजली उतरने से हुयी है

हमारे सहयोगियों के अनुसार यह घटना एक बच्चे को बचाने के चक्कर में सावधानी नही रखने की वजह से

हुयी है जिसमे एक इन्सान की जान भी चली गई

शनिवार, 11 जुलाई 2009

एक अनुरोध अपनों से

साथियों ,

आज कल इलाहबाद अपना हिंसा का छेत्र बनता जा रहा है जो की ग़लत है ,कभी इस जगह की पहचान

शिक्षा के केन्द्र के रूप में की जाती थी / पर हमें दुःख है अब ऐशा नही है /आज इलाहबाद में माफिया से लेकर आतंकी तक आ चुके है जो की यहाँ के लिए ग़लत है /अभी हॉल में लवायन गाव में हुए हत्या कांड ने दिल को काफी तकलीफ पहुचाई / हमारे लोगो को हो क्या गया है आख़िर हम क्यो एक दुसरे का खून

बहा रहे है /क्या हम प्यार के साथ नही रह सकते / कवियों का ये छेत्र क्या गोली का केन्द्र बन जाएगा ?

साथियों समय है हमें एक होने का विकाश के पथ पर चलने का प्यार का प्रतिबिम्ब बनने का

विकसित इलाहबाद ,समुचित इलाहबाद ,शिक्षित इलाहबाद बनाने का

क्यो की अपना इलाहबाद अभी भी विकास को तरस रहा है आवो हम मिलकर एक नया इलाहबाद बनाये

जहा प्यार हो , सम्मान हो , संस्कार हो ,श्रद्धा हो, सेवा हो ,सुख हो ,साधन हो ,



राहुल मिश्रा

संयोजक

भारतीय एकता संगठन परिवार



सभी से गुजारिश है कृपया इसे एक बार दिल से पढ़े /

शनिवार, 4 जुलाई 2009

रेल से अपेक्षा इलाहाबाद की


साथियों ,

आज हमारी नई रेल मंत्री ममता जी ने रेल बजट पेश किया जिसमे कई घोशनाए हुयी अब ये तो समय हीबताएगा की इन में से कितनी योजनाये लागु होगी / किराया न बढाकर ,जनता पर विश्वास तो जमाया पर सुरक्षा पर ध्यान न देना महगा पर सकता है /फिलहाल ये रेल बजट कई मायनो में जनता का रेल बजट है /कुछ खास बाते ------०१ - तत्काल की सीमा घटी०२-तत्काल शुल्क घटा केवल १०० रूपया हुवा०३- ५७ नई ट्रेन ,१२ नॉन स्टाप ट्रेन इलाहबाद को भी एक ट्रेन का तोफा

इलाहाबाद एक नजर रेल सेवा में


उत्तर मध्य रेलवे का मुख्यालय

पुरे देश के लिए ट्रेन पर राजधानी ट्रेनों का स्टापेज नही

नॉर्थ ईस्ट के लिए इलाहाबाद से कोई खास ट्रेन नही सारी ट्रेन दिल्ली से

प्रमुख माग जो इलाहाबाद का विकाश कर सकती है

०१- रेल पुल जो इलाहाबाद से हावडा को जोड़ता है

०२- इलाहाबाद से मुग़ल सराय के बीच एक पैसेंजर

०३- इलाहाबाद से नैनी , मेजा, मांडा के बीच लोकल ट्रेन

०३- इलाहाबाद से राम बाग़ ,प्रयाग ,आदि स्टेशन के लिए लोकल ट्रेन

०४- इलाहाबाद से गुवाहाटी ,तिनसुकिया स्पेशल ट्रेन

०५- इलाहाबाद से सतना ,इता रासी के बीच एक ट्रेन

०६-इलाहाबाद से लखनऊ के बीच रात्रि सेवा ट्रेन

०७- रेलवे अस्पताल


भारतीय एकता संगठन

इलाहाबाद

शुक्रवार, 26 जून 2009

जब जागो तभी सवेरा

कहने का मतलब ये है की देश के लिए जब कुछ करने का जज्बा पैदा हो जाए तो उसे पुरा करो

भारतीय एकता संगठन

दिल मिलाये देश बचाए

देश को बचने के लिए समाज के हर वर्ग को एक होना परेगा /समय के साथ कदम मिलाना परेगा नाकि जिम्मेवारी से बचना उचित होगा यह देश सब का है सब आगे आवो भारत बचावो
सुंदर भारत सम्पना भारत ,महान भारत , युवा भारत

भारतीय एकता संगठन
राहुल मिश्रा

samay ka

साथियों,
काफी समय बाद आपसे बाते हो रही है / दिल में कुछ परेशानी थी आखो में दर्द था आपसे न मिल पाने का पर ये सच है इन समय में आपने देश के लिए कुछ करने की योजना बनाई होगी
फ़िर मिलेंगे

जय भारत

बुधवार, 20 मई 2009

चोर गिरफ्तार

बीती रात रामपुर तिराहे के समीप चादी गाँव वाले रस्ते के समीप कुछ लोग गायको गाड़ी me लड़ते
हुए पकरे गए जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गिरफ्तार किए गए आदमी का नाम kallu
था

बुधवार, 25 मार्च 2009

सुचना

साथियों,
समय है अब देश के लिए योग्य नेता चुनने का इस लिए चुनाव में सक्रिय भागीदारी निभाए /
आज की सावधानी हमें भविष्य की सुरक्षा प्रदान करेगी
धर्मं, जाती, को भूल कर , विकास ,सुरक्षा , शान्ति का चुनाव करो देश को एक स्थिर सरकार प्रदान करे

भारतीय एकता संगठन

शुक्रवार, 13 मार्च 2009

संगठन की बैठक सम्पन्न

साथियों ,
आज सुबह भारतीय एकता संगठन के प्रधान कार्यालय में एक बैठक सम्पन्न हुई / जिसकी सुचना
ब्रिजेश शर्मा जी के द्वारा दी गई
बैठक का मुख्य विचार था संगठन को नई गति देना /
०१ - आज की बैठक में निम्न सदस्य सम्लित हुए
कमल त्रिपाठी , हीरा लाल , अरविन्द झा , दिनेश विश करमा , ब्रिजेश शर्मा , अरुण यादव , ओंकार यादव ,
गोविन्द द्रिवेदी ,
अगली बैठक संगठन की जल्द ही रखी जायेगी

सोमवार, 2 फ़रवरी 2009

एक विचार


भारतीय एकता संगठन का अभुदय माह फरवरी में ही हुवा था १९ फरवरी वर्ष २००० की तिथि हमारे

जेहन में अंकित है जिस दिन भारतीय एकता संगठन की आधार शिला रखी गई जिसमे हमारे सहयोगी थे /

स्वर्गीय अनिल कुमार कुशवाहा , सुशिल केशरवानी , धर्मराज सिंहआदि थे

पैर इसका वास्तविक उदय रामपुर के ब्रिज मंगल सिंह इंटर कॉलेज से हुवा जहा हमें मिला सहयोग अपने

इन साथियों से जिनके योगदान को कभी एकता परिवार भुला नही सकेगा उनमे है

विमलेश मिश्रा ' पूनम ", भूपेंद्र शुक्ला , मिथिलेश मिश्रा, राजू केशरवानी ,राजू पुस्तक मन्दिर, कमल त्रिपाठी , कपिल शर्मा , ब्रिजेश शर्मा ,चंद्रभान पाण्डेय, रामलखन तिवारी , श्याम तिवारी , बाबा ळाईट एंड साउंड कम्पनी ,

अशोक बेशर्म , अरविन्द झा , गोविन्द दुबे ,हीरालाल निषाद , हुमैद मुस्तफा ,वीरेंदर सिंह कुशुमाकर , तिफलाजी ,

कार्तिकेय तिवारी , उपेन्द्र पाण्डेय , सूर्य प्रकाश उपाध्याय , अजय उपाध्याय , डॉ। के .एन मिश्रा , मोछा मीस्थान भंडार , पाल किराना स्टोर, दिनेश विशकर्मा , आशाराम बताशा वाले , ठाकुर मुन्ना सिंह , जिन्होंने

हमारे एकता परिवार को हमेशा सहयोग प्रदान किया नाम तो इतने है की लिखा नही जा सकता क्योकि हर एक का यौगदान किसी से कम नही है चाहे वह संतलाल तली वाले हे क्यो न हो सब के सहयोग से ही

एकता परिवार का विकाश हुवा और आशा है आगे भी होता रहेगा जब तक इसमे कर्मनिष्ठ साथी रहेगे

हम हमेशा आपके आभारी है आपके सहयोग के लिए , आपके विचारो के लिए जब तक आप में ये जज्बे है तब तक भारत की एकता को कोई खतरा नही है किसी से


राहुल मिश्रा

संयोजक /संस्थापक

भारतीय एकता संगठन परिवार

गुरुवार, 29 जनवरी 2009

इलाहाबाद समाचार

समाचार में आपका स्वागत है

०१- उत्तर प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री नाशिमुदीन सिद्दीकी ने कहा की उ प्र के सारे गावो को जल्द ही
सडको से जोड़ा जाएगा /
०२- मावोवादियो ने बीएसएनएल टावर के कंटोल रूम को उडायायह घटना बिहार के नक्सल ग्रस्त
जिला गया की है /
०३- इलाहाबाद का कुभ मेला का तीसरा बड़ा स्नान बसंत पंचमी पर
०४- २७ जनवरी को धर्मं पथ की तरफ से कम्बल वितरण नेत्र हीनो को
०५- जमुनापार जाग्रति मिशन की तरफ़ से आयोजित जमुनापार महोत्सव धूम धाम के साथ संपन
०६- डॉ। भागवत पाण्डेय जमुनापार मिशन के संयोजक ने फ़ोन पर बताया की मिशन जल्द ही गावो के
विकाश के लिए कुछ क्रियान्वित करेगा
०७- बालदुर्गा सिमिति मुन्गारी का मानस सम्मलेन मार्च में आयोजित होने की सम्भावना

भारतीय एकता संगठन परिवार के सदस्यों के सौजन्य से --------

जिनमे शामिल है
गोविन्द द्रिवेदी , अरविन्द झा , कमल त्रिपाठी , कमलेश निषाद , महेश पाल ,भूपेंद्र शुक्ला ,
मार्गदर्शन - सिद्धनाथ झा , राहुल मिश्रा

बुधवार, 28 जनवरी 2009

इलाहाबाद समाचार

०१- भारतीय एकता संगठन के मंत्री गोविन्द नारायण द्रिवेदी ने सूचित किया है की संगठन की बैठक
३१ जनवरी को ब्रिज मंगल सिंह इंटर कॉलेज में होगी
०२- महाकवि त्रिफला जी द्वारा कंबल वितरण समारोह सफलता पूर्वक सम्पन्न हुवा
०३- भारत ने श्रीलंका को ६ विकेट से हराया
०४- आज असम बंद रहा
०५- बसंत पंचमी का आगमन शुरु

भारतीय एकता संगठन की तरफ़ से सभी पाठको को कोटिशः धन्यवाद

आज से भारतीय एकता संगठन का ये ब्लॉग केवल इलाहाबाद को समर्पित है आपको इस में इलाहाबाद से

जुड़ी खबरों , साहित्यों , और गतिविदियो की जानकारी प्राप्त हो सकेगी